आज से चार अर
ब साल से ढाई अरब साल के बीच के दौर को हम आर्केइयन कल्प के तौर पर जानते हैं.
उस दौर मे धरती पर क़ुदरती हंगामा बरपा हुआ था. ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से पूरे माहौल में राख और मलबा बिखरा हुआ था.
उल्का
पिंड लगातार धरती पर हमला करते रहते थे. सूरज की धुंधली सी रोशनी धरती पर
पड़ती रहती थी. उस वक़्त हमारी धरती आज से ज़्यादा तेज़ रफ़्तार से घूमती
थी. इसकी वजह से दिन छोटे होते थे.
ये वही दौर था जब धरती पर
महाद्वीप बने. इन महाद्वी
पों में कई जगह हल्की गहराई वाले पानी के ठिकाने
थे, जिनमें रोशनी से दूसरे केमिकल रिएक्शन होने लगे.
दक्षिण अफ़्रीका
के एमपुमालंगा सूबे में स्थित मखोंज्वा पर्वत उसी दौर के हैं. बार्बर्टन
शहर इन्हीं पहाड़ों के साए में बसा है. मखोंज्वा के पहाड़ आज से 3.57 अरब
साल पुराने हैं.
ये
समंदर से बाहर निकलने वाले ज़मीन के पहले टुकड़ों में से एक थे. हाल ही
में मखोंज्वा के पहाड़ों को यूनेस्को ने विश्व की धरोहर घोषि
त किया है. इन्हें बार्बर्टन ग्रीनस्टोन बेल्ट के नाम से भी जाना जाता है. ये धरती पर
सबसे पुरानी ज़मीनी चट्टानों में से एक हैं.में बार्बर्टन-मखोंज्वा जियोट्रेल की शुरुआत हुई थी. इसके तहत सैलानियों
को इस क़ुदरती धरोहर की सैर कराई जाती है. ये ट्रेल बार्बर्टन से शुरू
होकर ईस्वातिनी यानी पुराने स्वाज़ीलैंड की सीमा तक जाती थी. ये ट्रेल
मखोंज्वा पहाड़ों से होकर गुज़रती है.
इस ट्रेल से गुज़रते हुए आप
को धरती के विकास के अरबों साल के इति
हास के सबूत दिखते हैं. यहीं पर
ज़िंदगी का पहला बीज फूटा था. इसीलिए इसे ज़िंदगी के आग़ाज़ का ठिकाना भी
कहते हैं.
इस जियोट्रेल की शुरुआत जर्मनी की जेना यूनिवर्सिटी के
प्रोफ़ेसर क्रिस्टोफ़र ह्यूबेक और स्थानीय गाईड टोनी फेर्रार ने की थी. इन
दोनों ने ही मिलकर इस जियोट्रेल की गाइडबुक भी लिखी है. ये किताब बार्बर्टन
टूरिज़्म ऑफ़िस में मिल जा
ती है. इसे पढ़कर आप ये जान सकते हैं कि
मखोंज्वा के पहाड़ों की चट्टानों से वैज्ञानिकों ने क्या जानकारियां जुटाई
हैं.
आर्केइयन कल्प के दौरान धरती पर ऑक्सीजन नहीं थी. उस दौर में जो पहले
बैक्टीरिया विकसित हुए, उन्हें फोटोफेरोट्रॉफ्स कहा जाता है, जो उस वक़्त
समंदर में मौजूद पानी और कार्बन डाई ऑक्साइड को सूरज की रोशनी की मदद से
तोड़कर अपने विकास का रास्ता बना रहे थे. ज
ब ये रासायनिक क्रिया करते थे,
तो उन बैक्टीरिया से ऑक्सीजन निकलती थी.
समंदर में प्रचुर मात्रा
में मौजूद लोहे का जब इस ऑक्सीजन से मेल होता था तो आयरन डाई ऑक्साइड बनती
थी. ये उस बै
क्टीरिया की ऊपरी खोल का काम करती थी. आज जियोट्रेल के दौरान
आप अरबों साल पहले ही इस रासायनिक क्रिया के सबूत देख सकते हैं. इस हिस्से
को बांडेड आयरन फॉर्मेशन लेबाय कहते हैं. आयरन ऑक्साइड की वजह से यहां की
चट्टानें लाल हो गई हैं.
टोनी फेर्रार कहते हैं कि, "बैक्टीरिया की
लोहे से बनी इस ऊपरी खोल में ज़ंग लग गई और ये समंदर में डूब गई. करोड़ों
साल बाद ये सारा लोहा समंदर से बाहर आया और इनसे जो ऑ
क्सीजन आज़ाद हुई, वो
धरती की आबो-हवा में फैलने लगी. इससे धरती पर ऑक्सीजन की तादाद बढ़ी और
बहुकोशिकीय जीवों का विकास शुरू हुआ. आज जिस हवा से हम सांस लेते हैं, ये
उन्हीं बैक्टीरिया की बनाई हुई है."
जब इस इलाक़े में ज़िंदगी के पहले सबूत वैज्ञानिकों ने ढूंढे, उससे बहुत
पहले लोगों ने यहां एक और ख़ज़ाना तलाश लिया था और वो था-सोना.
थोड़ा-बहुत सोना तो 1874 में डे काप घाटी में ही खोज लिया गया था. लेकिन, इसे बेचकर
कमाई नहीं की जा सकती थी.
बाद में दो भाइयों हेनरी और फ्रेड बारबर
ने अपने चचेरे भाई ग्राहम की मदद से यहां सोने के ठिकाने 1884 में खोजे.
इसके बाद तो यहां सोने की तलाश का काम तेज़ हो गया.
24 जुलाई 1884 को
डेविड विलसन नाम के सोने के कमिश्नर ने बारबर भाईयों के सम्मान में इस
क़स्बे का नाम बार्बर्टन रखा. इसके पास स्थित मूंगे की चट्टानों को भी
बारबर
रीफ़ नाम दिया गया. इसके बाद बहुत से लोग अपनी क़िस्तम आज़माने यहां
आए.
कहा जाता है कि इस इलाक़े में इतना सोना था कि लोग चट्टानों से सोने को
नहीं बल्कि सोने से चट्टानों के टुकड़े अलग किया करते थे. इसका सबसे बड़ा
ठिकाना गोल्डेन क्वैरी थी, जो शेबा खदान का हिस्सा थी. इसे दुनिया की सबसे
दौलतमंद सोने की खदान कहते हैं.
आज भी यहां सोने की तलाश में
खुदाई होती है. ये दक्षिण अफ़्रीका की सबसे पुरानी सोने की खदान है, जिसमें खुदाई
का काम होता है. ये खदान पिछले 130 सालों से चल रही है.
शेबा रीफ़ के पास बसा है यूरेका सिटी. ये सुनहरी खदान यानी गोल्डेन
क्वैरी की तलाश के बाद बसाया गया था. एक दौर था कि यहां 700 लोग रहते थे.
तब यूरेका सिटी में दुकानें थीं, होटल थे, म्यूज़िक हॉल था, लॉन टेनिस के
दो कोर्ट थे. यहां एक घुड़सवारी ट्रैक भी था.
1885 में यहां सोने की
तलाश में मची भगदड़ यानी गोल्डेन रश के
दौर में 28 पब खुले हुए थे. ये सभी
20 किलोमीटर के दायरे में स्थित थे. इनमें शराब के बदले में गिन्नियां दी
जाती थीं.
लेकिन, 1924 के आते-आते यूरेका शहर वीरान होने लगा था.
1886 में यहां से 360 किलोमीटर दूर सोने का दूसरा ख़ज़ाना मिलने के बाद इस
शहर से लोग उधर कूच कर गए. बाद में ये नया ठिकाना ही आज के जोहानिसबर्ग शहर
के तौर पर विकसित हुआ.
आज यू
रेका सिटी मखोंज्वा पहाड़ों के बीच
स्थित माउंटेनलैंड्स नेचर रिज़र्व का हिस्सा है. इसकी विरासत संभालने की
वजह से आप यहां सिर्फ़ उन टूर के साथ आ सकते हैं, जिसकी इजाज़त मिली हो.
सोने की तलाश में शुरू हुई गोल्ड रश का नतीजा ये हुआ कि मखोंज्वा के
पहाड़ों की तरफ़ सिर्फ़ सोना खोजने वाले नहीं बल्कि लेखक और दूसरे तरह के
लोग भी आए. इसी दौर में घुमंतू कलाकार के तौर पर मशहूर कोनराड फ्रेडरिक
गेनाल ने भी बार्बर्टन का रुख़ किया.
जर्मन मूल के फ्रेडरिक फ्रांस
के विदेश विभाग में नौकरी करते थे. 1890 के दशक में महज़ 19 बरस की उम्र
में फ्रेडरिक ने अपने जहाज़ से उस वक़्त भागने की कोशिश की जब वो
स्वेज नहर से गुज़र रहा था. सिपाहियों ने उन्हें पीछे से गोली मार दी थी.
बाद
में गेनाल ने एक कारोबारी का भेष धर कर पूरे अफ्रीका की सैर की. वो कुछ
दिनों तक बार्बर्टन शहर में भी रहे. बाद में फ्रेडरिक ने डरबन शहर का रुख़
किया. 1939 में फ्रेडरिक की वहीं मौत हो गई. पूरे सफ़र के दौरान फ्रेडरिक
ने पेंटिंग करके अपना गुज़ारा किया.
वो उन चर्चों, होटलों और शहरों
की पेंटिंग बनाते थे, जहां वो घूमने जाया करते थे. आज उनकी बनाई हुई
पेंटिंग को बार्बर्टन शहर के ट्रांसवाल होटल की दीवारों पर
देखा जा सकता है. पास के डिगर्स रिट्रीट होटल में भी उनकी कुछ पेटिंग रखी हुई हैं.
बार्बर्टन की नदी की तलहटी में आज भी सोना मिल जाता है. यहां घूमने आने
वाले लोग साउथ काप नदी के पानी में से सोना निकालने की कोशिश कर सकते हैं.
नदी के पानी में से आसानी से सोने के कण छांटे जा सकते हैं.
स्थानीय
गाइड एंगेलब्रेख़्त ने नदी के पानी को लगातार छानकर मुझे सोना निकालना
सिखाया. एंगेलब्रेख़्त कहते हैं कि
सोने में कुछ तो ख़ास है. लोग इसके लिए
पागल हो जाते हैं.
मखोंज्वा पहाड़ों की तलहटी पर बना हुआ है, 'द फाउंटेन होटल ऐंड बाथ.' ये
होटल 1884 में शुरू हुआ था. तब ये केवल सार्वजनिक हम्माम था. ये यहां पर
दुनिया भर से आकर सोने की खदानों में काम करने वालों के लिए स्नानघर भर था.
ये दक्षिण अफ्रीका के इस सूबे का पहला स्विमिंग पूल भी था.
अब इसका नाम बदलकर फ़ाउंटेन बाथ्स गेस्ट कॉटेज कर दिया गया है. पुराने स्विमिंग पूल की जगह पर ही नया स्विमिंग पूल बनाया गया है.
इसके
मालिकों एस्मारी और निक हैरोड के पास पुराने अख़बारों की
कतरनें हैं. इनमें इस होटल का इतिहास बयां है. बहुत से लोगों का इस होटल से पीढ़ियों का
नाता रहा है.
एस्मारी कहते हैं कि लोगों को होटल के इतिहास में
बहुत दिलचस्पी है. इसीलिए उन्होंने इसका इतिहास बताने वा
ली एक श्रृंखला शुरू की है. ये टाइमलाइन बदलते वक़्त की गवाह है.